Monday, March 28, 2011
फ़िक्र ऐ रेआया
झूट खिला जब से मेरी ज़ात मैं !
प्यार महकने लगा बिन बात मैं!
सिफ्फरिशी धुन ही बुरी दोस्तों !
दखल न दो रुत्बी अनायात मैं !
हाथ मैं सच्चे की लिए डिग्रियां!
झुक के चलो जम्हूरी सौगात मैं !
सच न कहो गे तो कमाओ गे दाम!
रिश्वतें बटती नहीं खैरात मैं !
कानूनी खुशरंग हवा क्या चली !
घुस देहेकने लगा जज्बात मैं !
मांग के गुराबा की आवाज़ दौलतें !
खर्च न करना सही औकाफ मैं ,
फितना ऐ आरिफ ने लगे है बांग
फिकरे रेआया लिए एहसास मैं !
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